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Wednesday, February 7, 2018

शिवाजी को अपने आश्रयदाता की यह दरिद्रता भीतर तक चुभ गई।



उन दिनों शिवाजी मुगल सेना से बचने के लिए वेश बदलकर रहते थे। इसी क्रम में एक दिन शिवाजी एक दरिद्र ब्राह्मण के घर रुके। ब्राह्मण का नाम विनायक देव था। वह अपनी मां के साथ रहता था। विनायक भिक्षावृत्ति कर अपना जीवन-यापन करता था।


अति निर्धनता के बावजूद उसने शिवाजी का यथाशक्ति सत्कार किया। एक दिन जब वह भिक्षाटन के लिए निकला तो शाम तक उसके पास बहुत ही कम अन्न एकत्रित हो पाया। वह घर गया और भोजन बनाकर शिवाजी और अपनी मां को खिला दिया। वह स्वयं भूखा ही रहा। शिवाजी को अपने आश्रयदाता की यह दरिद्रता भीतर तक चुभ गई। उन्होंने सोचा कि किसी तरह उसकी मदद की जाए।




शिवाजी ने उसी समय विनायक की दरिद्रता दूर करने का दूसरा उपाय सोचा। उन्होंने एक पत्र वहां के मुगल सूबेदार को भिजवाया। पत्र में लिखा था कि शिवाजी इस ब्राह्मण के घर रुके हैं। अत: उन्हें पकड़ लें और इस सूचना के लिए इस ब्राह्मण को दो हजार अशर्फियां दे दें। सूबेदार शिवाजी की चरित्रगत ईमानदारी और बड़प्पन को जानता था। अत: उसने विनायक को दो हजार अशर्फियां दे दीं और शिवाजी को गिरफ्तार कर लिया।


बाद में तानाजी से यह सुनकर कि उसके अतिथि और कोई नहीं स्वयं शिवाजी महाराज थे, विनायक छाती पीट-पीटकर रोने लगा और मूर्छित हो गया। तब तानाजी ने उसे सांत्वना दी और बीच मार्ग में ही सूबेदार से संघर्ष कर शिवाजी को मुक्त करा लिया। जो राजा अपने प्रजा या अतिथि के लिए अपने प्राण संकट में डाल सकता है। वही राजा आदर्श होता है।

19th Feb को शिवाजी जयंती है इस शुभ अवसर पर मैं

19th Feb को शिवाजी जयंती है इस शुभ अवसर पर मैं आपके साथ उनके जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग साझा कर रहा हूँ. आइये हम भारत वर्ष के इस वीर सपूत को नमन करें और उनके जीवन से शिक्षा ले भारत माता की सेवा में अग्रसर हों.

       
                       .             प्रसंग १:

शिवाजी के समक्ष एक बार उनके सैनिक किसी गाँव के
 मुखिया को पकड़ कर ले लाये . मुखिया बड़ी-घनी मूछों वाला बड़ा ही रसूखदार व्यक्ति था, पर आज उसपर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था. उस समय शिवाजी मात्र १४ वर्ष के थे, पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय थे और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था.
उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुना दिया , ” इसके दोनों हाथ , और पैर काट दो , ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती .”
शिवाजी जीवन पर्यन्त साहसिक कार्य करते रहे और गरीब, बेसहारा लोगों को हमेशा प्रेम और सम्मान देते रहे.


प्रसंग २:
शिवाजी के साहस का एक और किस्सा प्रसिद्द है . तब पुणे के करीब नचनी गाँव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था . वह अचानक ही कहीं से हमला करता था और जंगल में ओझल हो जाता. डरे हुए गाँव वाले अपनी समस्या लेकर शिवाजी के पास पहुंचे .
” हमें उस भयानक चीते से बचाइए . वह ना जाने कितने बच्चों को मार चुका है , ज्यादातर वह तब हमला करता है जब हम सब सो रहे होते हैं.”
शिवाजी ने धैर्यपूर्वक ग्रामीणों को सुना , ” आप लोग चिंता मत करिए , मैं यहाँ आपकी मदद करने के लिए ही हूँ .”
शिवाजी अपने सिपाहियों यसजी और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े . बहुत ढूँढने के बाद जैसे ही वह सामने आया , सैनिक डर कर पीछे हट गए , पर शिवाजी और यसजी बिना डरे उसपर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया. गाँव वाले खुश हो गए और “जय शिवाजी ” के नारे लगाने लगे.


                                                                   प्रसंग ३ :
शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था . वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे. इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अधिक ज्ञान नहीं था. किसी अवसर पर वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए . शाहजी ने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा . लेकिन , शिवाजी अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे . विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुए. और शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से वापस चले गए.

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