उन दिनों शिवाजी मुगल सेना से बचने के लिए वेश बदलकर रहते थे। इसी क्रम में एक दिन शिवाजी एक दरिद्र ब्राह्मण के घर रुके। ब्राह्मण का नाम विनायक देव था। वह अपनी मां के साथ रहता था। विनायक भिक्षावृत्ति कर अपना जीवन-यापन करता था।
अति निर्धनता के बावजूद उसने शिवाजी का यथाशक्ति सत्कार किया। एक दिन जब वह भिक्षाटन के लिए निकला तो शाम तक उसके पास बहुत ही कम अन्न एकत्रित हो पाया। वह घर गया और भोजन बनाकर शिवाजी और अपनी मां को खिला दिया। वह स्वयं भूखा ही रहा। शिवाजी को अपने आश्रयदाता की यह दरिद्रता भीतर तक चुभ गई। उन्होंने सोचा कि किसी तरह उसकी मदद की जाए।
शिवाजी ने उसी समय विनायक की दरिद्रता दूर करने का दूसरा उपाय सोचा। उन्होंने एक पत्र वहां के मुगल सूबेदार को भिजवाया। पत्र में लिखा था कि शिवाजी इस ब्राह्मण के घर रुके हैं। अत: उन्हें पकड़ लें और इस सूचना के लिए इस ब्राह्मण को दो हजार अशर्फियां दे दें। सूबेदार शिवाजी की चरित्रगत ईमानदारी और बड़प्पन को जानता था। अत: उसने विनायक को दो हजार अशर्फियां दे दीं और शिवाजी को गिरफ्तार कर लिया।
बाद में तानाजी से यह सुनकर कि उसके अतिथि और कोई नहीं स्वयं शिवाजी महाराज थे, विनायक छाती पीट-पीटकर रोने लगा और मूर्छित हो गया। तब तानाजी ने उसे सांत्वना दी और बीच मार्ग में ही सूबेदार से संघर्ष कर शिवाजी को मुक्त करा लिया। जो राजा अपने प्रजा या अतिथि के लिए अपने प्राण संकट में डाल सकता है। वही राजा आदर्श होता है।







